भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ूब बजाए बीन घोड़ा राजा का / सुरेन्द्र सुकुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 17 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र सुकुमार |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खूब बजाए बीन घोड़ा राजा का।
नाचे ता तक धीन घोड़ा राजा का।
काना है असवार काफ़िला अन्धा है,
चाँदी की है जीन घोड़ा राजा का।
एक टाप गद्दी पर दूजी जनता पर,
ऐसा है संगीन घोड़ा राजा का।
ये घोड़ा तो बिल्कुल ही मायावी है,
कर लो यार यक़ीन घोड़ा राजा का।
खींचो जरा लगाम और मारो कोड़ा
होगा लंगड़दीन घोड़ा राजा का।
1980 में ’सारिका’ में प्रकाशित ग़ज़ल