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सफल कवि / कुमार मुकुल

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हिटलर को कोसता

स्टालिन को सर नवाता

किसी गोष्ठी की अध्यक्षता को

आगे बढ़ जाता है सफल कवि


यूरेका यूरेका

ध्वनित होता है

उसकी हर कविता से

हर पंक्ति उसकी

पत्थर की लकीर होती है

ख़ास आदमी के ऐश्वर्य की

खिल्लियाँ उड़ाना आता है उसे

मंजिल बहुल अपने आफिस से

लिफ़्ट को त्याग

सीढ़ियों से

नीचे आता है सफल कवि

और मानता है

कि इस तरह वह

आम आदमी के निकट आता जा रहा है


पूरी दुनिया

नंगी आँखों देखना चाहता है वह

पूरी धरती रौंदना चाहता है

नंगे पांव

पर लोग हैं

कि करने नहीं देते कुछ

आम जन की समझ में

कर्मठ

और अपनी नज़रों में

सबसे बड़ा काहिल होता है सफल कवि


नवागंतुकों से

सुहागनों की तरह

पेश आता है सफल कवि

बातों का घूंघट

सलीके से करता है

विचारों से

पति-परमेश्वर की तरह

मिलाता है मुश्किल से


क़लम को

कूची की तरह पकड़ता है

सफल कवि

और चेहरों को

चूल्हों की तरह पोत देता है

फिर महसूसता है

कि उसकी नसों का ताप

ठंडा पड़ रहा है।