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संत समागम / कुमार मुकुल

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गाय को कभी देखा है आपने

सिर उठाकर बाँ करते हुए

अपने बछड़ों को आवाज देते हुए


मुद्रा तो वही थी उस गाय की भी

पर आवाज़ नहीं थी कहीं

बाँ की

मुँह पर जाब भी नहीं था

और बछड़ा भी नहीं था कहीं

दूर-दूर तक

ना ही किसी कसाई के यहाँ खड़ी थी वह


दरअसल, एक गो दुग्ध-प्रेमी के घर के बाहर का

दृश्य है यह

जहाँ उसके ऊँचे लौह-दरवाज़े से


बाँ गया है गाय को

नथुनों और गले से बंधी रस्सी को

दम भर खींचकर

ऊपर ग्रील से बांध देने के बाद

के इस दृश्य में

गोपालक

थनों से लगकर

दूह रहा है दूध


गाय को पहले जी भर डंगाने के बाद

इंजेक्शन देने तक के

मनभावन दृश्य की कल्पना

तो कर ही सकते हैं आप


बहुत अप्रिय है ना यह दृश्य

पर छोड़ें उसे

चलें महानगर की गोरक्षिणी सभा में

जहाँ गोहत्या के विरुद्ध

होने वाला है संत-समागम।