भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़र्क कर दो कि तुम चबा लो मुझे / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:51, 23 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़र्क कर दो कि तुम चबा लो मुझे
मैं तो कहता रहा हूँ खा लो मुझे!

अहले-दुनिया के दर्दो-ग़म आओ
और चिलमन में ठूस डालो मुझे!

गर नहीं है तो फिर न देखो ख़्वाब
हैजो कूवत तो आके पा लो मुझे!

या तो उनको ही अक़्ल बख़्शो या
आके फ़ज़ले-ख़ुदा उठा लो मुझे!

इसका मतलब कि फिर गिरा दोगे
ऐसे आकर के मत सँभालो मुझे!

मुझको पीकर अहा कहो, इसके
पहले, थोड़ा-बहुत हिला लो मुझे!

दिख रहे हैं ख़ुशी के बदतर लोग
ग़म के अच्छों कहीं छुपा लो मुझे!