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रूह ऊला थी, जिस्म सानी था / दीपक शर्मा 'दीप'

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एक कँटीली नार है भाई
नार नहीं गुलनार है भाई

हाए सरापा शादाबी तन
जोबन अपरम्पार है भाई

माहे-सावन की शोख़ी है
इंद्रधनुष का सार है भाई!

वो गालों पा टीका काला
उस का पहरे-दार है भाई

पर्बत-दरिया-घाटी-सहरा
यों उसका आकार है भाई

'वो ही दिल की चारागर है
दिल उससे बीमार है भाई'

वो ग़ाइब है और अदब को
उस की ही दरकार है भाई!

उसके दिल का वो ही जाने
अपना दिल लाचार है भाई

क्योंकर नाज़ दिखावे ना वो
जब उसकी सरकार है भाई