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तू रहे लाख अब हिजाबों में / कविता सिंह
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तू रहे लाख अब हिजाबों में
ढूँढ़ लेंगे तुझे नकाबों में
रेत का वह तो इक समंदर था
तिश्नगी ले गई सराबों में
गर्दिशों ने हमें सिखाया जो
वो सबक है कहाँ किताबों में
काग़ज़ी फूल में कहाँ ख़ुशबू
जो शज़र के है इन गुलाबोँ में
जो कहर ज़िंदगी ने बरपा है
वो तो सोचा नहीं था ख्वाबों में
मुजमहिल आँख है थके सपने
कैद वीरानियाँ हैं ख्वाबों में