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उस पार / कैलाश पण्डा
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स्वयं चाहकर भी
मुक्त नहीं होे सकोगे
वेगों को
रोक सकोगे तो कैसे ?
जात पात
धर्म-सम्प्रदाय के चलते
वृत्तियों शांत होगी कैसे ?
मै तो हूं ही नहीं
जब से यह मंत्र जाना
मानो जाग गया तब से
अतः रूपान्तरण की क्रिया कैसी ?
अब तो निर्माण की प्रक्रिया
मानो दुग्ध की दरिया
अन्तर्धारा प्रस्फुटित होगी ही
सर्वात्माओं का
आत्मसात् कर
बयार से बतियाऊंगा
सिच्चित कर ले तू भी
तथ्यों को
अन्तर्विकसित
अभ्यन्तर तर
तरू तिक्त तार-तार सा मधुर
तब मंथन कैसा ?
सभी ग्रन्थों का
अनुसरण कर लें
तू जायेगा उस पार
जहां धर्म है केवल
जिसका नाम नहीं
हां केवल वह।