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पत्रिका का विशेषांक / सैयद शहरोज़ क़मर

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पत्रिका का विशेषांक ला पढ़ नहीं
सका तुम्हारी कविताएँ
तस्लीमा, माफ़ करना
तस्लीम करता हूँ
अपनी फूटी औक़ात
छोटी नौकरी बड़प्पन का ढोल
'लज्जा' और 'औरत के बहाने' भी
नहीं ख़रीद सकता
माँ-बहन को ज़रूरी हिदायत देने के लिए
तनख़्वाह में से
नहीं बच पाता कुछ प्रतिमाह
कि सर्द से पिघलती पगडण्डी
को कर सकने पार
ख़रीद सकूँ एक जोड़ी जूते
या पी सकूँ एक गिलास दूध
गिरती सेहत को उठाने के लिए

अख़बार की नौकरी पा लेने के बाद
दुनिया को समझने या समझाने
से ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है
बचा पाना नौकरी
माँ-बाप, भाई-बहन के
नमक-भाजी का बन्दोबस्त
और अपनी सेहत से ज़्यादा
दिखने लगता है घर का टूटा छप्पर
आँख फोड़ू और हाथ तोड़ू
शब बेदारी के बाद अगर
बचा रह जाताहै थोड़ा दम
तो इतना साहस नहीं होता
कि कह सकूँ माँ से
उम्मीद ज़्यादा मत करना
समझ लेना कि
तुम्हारा अब कोई बेटा नहीं

08.02.1996