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अब्र ने चाँद की हिफ़ाजत की / संजू शब्दिता
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अब्र ने चाँद की हिफ़ाजत की
चाँद ने खुद भी खूब हिम्मत की
आज दरिया बहुत उदास लगा
एक कतरे ने फिर बग़ावत की
वो परिंदा हवा को छेड़ गया
उसने क्या खूब ये हिमाक़त की
वक़्त मुंसिफ़ है फ़ैसला देगा
अब जरूरत भी क्या अदालत की
धूप का दम निकल गया आख़िर
छांव होने लगी है शिद्दत की