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कुछ न कहना / आर्य भारत

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तुम जहाँ हो चुप ही रहना
कुछ न कहना
मत बताना की हमारी प्रेमिका तुम हो
मत बताना की बहुत ही प्यार करता हूँ
चाय की हर चुस्कियों में
कुल्हड़ो पर होठ का सीत्कार भरता हूँ
जो मेरे प्रेम से उपजी हुई एक खोज है
जो मेरे होठ पर रक्खी हुई एक कल्पना की ओज है
सब छिपाना
स्त्रियाँ तो जन्म को भी गुप्त रखती आ रही है
मैं तो बस प्रेमी तुम्हारा
देह से स्पर्श मेरे
होठ से आदर्श मेरे
दृष्टि से हर हर्ष मेरे
तुम छुपाना
और एकाकी भरे माहौल में
बन कृष्ण मुझको पार्थ सा
झकझोर देना
तुम सदी के कलह से उपजी हुई
कविता में गीता हो
तुम समर के बोध से अनूदित
हमारी भव्य मीता हो
इसलिए सबकुछ छुपाना
जो हमारे बीच का आकाश है
उसमें उड़ाना मत
अपनी आत्मा की गंध
छुपाना ग्रह-नक्षत्रों को
जो तुमने हैं बनाये
छुपाना निर्वात
जिसमे प्रेम का गुरुत्व हमने है बहाए
मैं जानता हूँ इसलिए तुमसे मैं ऐसा कह रहा हूँ
बस तुम ही हो जो मुझको मुजरिम होने से
जेल जाने से
छुपा सकती हो
मुझको भुखमरी से
बचा सकती हो