अन्धकार रात और 
देह की सिहरन में महुआ के फूल की बास। 
भरभराई आँखों में बिखरी प्रीत। 
छेड़ा कब देहाती गीत 
दोनों हाथों को दबोच लेने पर गर्म हो उठा श्वास। 
रक्त की तरह उठी है ललकार की तरंग। 
नशे में उन्मत्त कर दे ऐसा तुम्हारा चेहरा। 
सीने के अन्दर छोऊ नाच एवं माँदल। 
इस तरह रातों में हम दोनों 
पत्तों में घिरे ज़मीन पर 
अंगारे की तरह बिखर जाएँगे। 
लपलपाकर जंगल को ही निगल जाऊँगा। 
 नशेड़ी दोनों जाएँगे स्वर्ग आजू-बाजू लेटकर।  
मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास