भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आटे-बाटे / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 1 जनवरी 2018 का अवतरण
आटे-बाटे दही पटाके,
सोलह-सोलह सबने डाटे।
डाट-डूटकर चले बजार,
पहुँचे सात समन्दर पार।
सात समन्दर भारी-भारी,
धूमधाम से चली सवारी।
चलते-चलते रस्ता भूली,
हँसते-हँसते सरसों फूली
फूल-फालकर गाए गीत,
बन्दर आए लंका जीत।
जीत-जात की मिली बधाई,
भर-भर पेट मिठाई खाई।