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चार क्षणों में / कुमार मुकुल

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उन चार क्षणों में

जो हँसता हरा-नीला रंग

तुम्हारी आँखों में चमका था

क्या था वह


क्रोध में तुम्हारी आँखें काली हो जाती हैं

और हँसी में सब्ज़

क्या वह सामने पहाडि़यों पर उगे दरख्तों की छाया थी

या आसमाँ की रंगत या दुपट्टे की


पूरे वक़्त तुम च्यूंगम में लपेटकर

लोगों का घूरना चबाती रही

और मैं तुम्हारे रूप में

अरूप होता रहा।