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देवदारु वन / गब्रिऐला मिस्त्राल / अनिल जनविजय

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चलो, आओ जंगल में चलें।
तुम्हारे चेहरे के पास से गुज़रेंगे पेड़
और मैं उन्हें रोककर कहूँगी — इसे ले लीजिए,
पर वे तुम्हें ग्रहण करने के लिए
नीचे न झुक पाएँगे।

रात देखती है अपने जीवों को
पर देवदारु के पेड़ों को नहीं देख पाती
क्योंकि वे हमेशा एक जैसे बने रहते हैं
पुराने घायल वासन्ती दिनों से आज तक वसन्त
दुग्ध देकर धन्य करता है शाश्वत दोपहरों में।

अगर पेड़ तुम्हें उठा पाते
तो वे तुम्हें उठा लेते अपनी बाहों में
और घाटी-घाटी घुमाते
एक बाँह से दूसरी बाँह
एक पिता से दूसरे पिता की गोद में
बच्चे की तरह मचलते तुम।
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय