भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता तय करती है / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 5 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=सभ्‍यता और जी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK​​ avita}}

 
जानते हुए कि कविता
व्यक्तित्व चमकाने की चीज नहीं
एक मुकम्मल बयान और शब्दों में
आदमी होने की तमीज है
जानना चाहोगे तुम
कि कविता क्या है
कैसे यह
महबूबा के होठों से
गुलमोहर की शाखों पर खिलती हुई
सड़क पर बिखरे
आदमी के खून तक का सफर
पूरा करती है
कविता रोटी की फसल पैदा कर सकती है
यह व्यक्ति को सार्वजनिक करती है
या सार्वजनिक को व्यक्त ?

अपनी छोटी सी समझ से

हम हैं , इसी से कविता है
यह हमारे होने का प्रमाण है
कविता मैं से
तुम या वह होने की छटपटाहट है
बतलाती है यह कि तटस्थता
नपुंसकों की अक्षमता ढकने को
एक सुंदर भावबोध है
और समष्टि से संलग्नता
उर्वर होने की शर्त

यह वसंत से
कोयल की कूक और बौरों की गंध का
संबंध साबित करती है
यह बतलाती है कि कैसे
शून्‍य में दागे गए चुंबनों के चिन्ह
प्रिया के रुखसारों पर सिहरन पैदा करते हैं
यह सिखलाती है
कि नियॉन लाइट्स की रौशनी
हमारे अंतर का अंधकार
दूर नहीं कर सकती
कि ध्वनि या प्रकाश के वेग से दौड़ें हम
धरती लंबी नहीं होने को
कि एकता मारे बेजान केचुओं का
समूह नहीं एक बंधी हुई मुठ्ठी है

यह बंदूक की नली से
भेड़िए और मेमने का
फर्क करना सिखलाती है
कविता तय करती है कि कब
चूल्हे में जलती लकड़ी को
मशाल की शक्ल में थाम लिया जाए

या अन्य ढेर सारी गांठें
जिन्हें कोई नहीं खोलता
कविता खोलती है
जहां कहीं भी गति है वहीं जीवन है
और कविता भी।​​