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फिरकी / कन्हैयालाल मत्त

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फर-फर-फर-फर फिरकी थिरकी
चक्कर खाती जाती है।
अपनी धुन में मस्त हुई-सी
ख़ूब घूमती जाती है।

सुनती नहीं किसी की कुछ भी,
झूम-झूम इतराती है।
रंग-बिरंगा नाच दिखाकर,
फूली नहीं समाती है।

पल भर अगर ठहर जाए तो
धरती पर गिर जाती है।
रुकने से बेहद घबराती
चलने से हर्षाती है।