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चित्र -वीथी / लावण्या शाह
Kavita Kosh से
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शाम को आने का वादा, इस दिलको तसल्ली दे गया, आनेका कह कर तुमने, हमे सुकूँ कितना दिया !
अमलतास के पीले झूमर भर गये, आँगन हमारा, साँझ की दीप बाती जली, रोशन हो गया हर किनारा !
पाँव पडे जब दहलीज पर - हवाने आकर, हमको सँवारा, आँगन से, बगिया तक, पात पात, मुस्कुराया !
बिँदीया को सजाती उँगलियोँने, काजल नयनोँमेँ बिखेरा, इत्रकी शीशीसे फिर ले बूँद, हमने उन्हे, गले से लगाया !
घरसे भीतर जाने का रस्ता, लाँघ कर, जो भी है, जाता , या आता ! खडी रहती जो, हमेशा, वो दहलीज है!