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माँ, मुझे फिर जनो / लावण्या शाह

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~~" देखो, मँ लौट आया हुँ ! अरब समुद्र के भीतर से, मेरे भारत को जगाने कर्म के दुर्गम पथ पर सहभागी बनाने, फिर, दाँडी ~ मार्ग पर चलने फिर एक बार शपथ ले, नमक , चुटकी भर ही लेकर हाथ मँ, प्रण ले, भारत पर निछावर होने मँ, मोहनदास गाँधी,फिर, लौट आया हूँ !