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जाओ बादल / ज्ञान प्रकाश आकुल

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जितने लोग पढ़ेंगे
पढ़कर,
जितनी बार नयन रोयेंगे
समझो उतनी बार,
गीत को
लिखने वाला रोया होगा।

सदियों की अनुभूत उदासी यूँ ही नहीं कथ्य में आयी
आँसू आँसू हुआ इकट्ठा मन में एक नदी लहरायी
इस नदिया में घुलकर
जितने लोग
प्यास अपनी खोयेंगे,
सब के हिस्से का वह मरुथल
गीतकार ने ढोया होगा।

मंत्रों जैसे गीत मिलेंगे मंत्रमुग्ध से सुनने वाले
सुनकर लोगों ने सहलाए अपने अपने दिल के छाले
जितनी रातें जाग जागकर
लोग नए सपने बोयेंगे,
उतनी रातें गीत अकेला
झूठ मूठ ही सोया होगा।

आँसू से ही बने हुए हम मुस्कानों के कारोबारी
दुनिया को जी भर देखा पर सीख न पाए दुनियादारी
गाछ कि जिसके नीचे
आने वाले बंजारे सोएंगे
समझो किसी गीत ने उसको
अश्रु मिलाकर बोया होगा।