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सामना कैसे करें? / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
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है कोई शिकायत,
तो कुछ भी नहीं
और होगी भी नहीं
भविष्य में
यथासम्भव लुटा कर भी
मेरी ही झोली रहेगी हमेशा अधूरी
सँजोकर रख नहीं पाया कुछ भी
और याद करूँ कुछ तब
टीस-सी उठती है
भीतर से बाहर
दिन तो निकल जाता है किसी तरह
और रात सो जाती है
थक हारकर
शाम ठिठकती है
भीगी, भावुक यादों के साथ
टालना चाहूँ तब
ज़्यादा क़रीब होती है
उसका कैसे करें सामना?
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत