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उधड़ी मिली / ज्योत्स्ना शर्मा

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1
सुघड़ बाला
ले हाथों में दीपक
बाला, सँभाला।
2
संध्या डुबोए
सागर के जल में
स्वर्ण कटोरा।
3
सुनो तो ज़रा
दिल ही तो सुनता
दिल का कहा।
4
हैं अनमोल
ज़ख़्मों को भर देते
दो मीठे बोल।
5
उधड़ी मिली
रिश्तों की तुरपन
गई न सिली।
6
फाँस थी चुभी
मुट्ठी में अँगुलियाँ
बँधी न कभी।
7
अरी तन्हाई!
शुक्रिया संग मेरे
तू चली आई.
8
करूँ जतन
बुझे मन की तृष्णा
मिटे तपन।
9
व्याकुल मन
तेरी ओर ताके हैं
मेरे नयन।
10
कब आओगे
तड़पाए चाहत
भरे जलन।