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ओढ़के बैठा / ज्योत्स्ना शर्मा
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धानी चूनर
ऋतुराज करते
फूलों की वर्षा!
52
गेंदे का तुर्रा
ऋतुराज पधारे
पगड़ी धारे!
53
था जर्द पत्ता
थाम रहीं कोपल
फूलों की सत्ता!
54
कैसा आघात!
किरणों की मस्ती पे
तुषारापात।
55
पथ ओझल
ठिठुरते क़दम
चला दिवस।
56
छुपा ले गई
आँचल में सूरज
शीत नागरी।
57
ओढ़के बैठा
नटखट सूरज
झीनी चादर।
58
नन्हा बटोही
चला गुनगुनाता
नीले पथ पर।
59
उजली लगी
नन्हें से अधरों पे
बिखरी हँसी.
60
उठे जो नैन
प्रेम भरे मुख पे
फैला आलोक।
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