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स्पर्शातुर अबोध काँटों को / नागराज मंजुले / टीकम शेखावत
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स्पर्श के लिए आतुर
अबोध काँटे
नहीं जानते
हेतु के जन्तु
दरअसल काँटों को सहलाना
सदा ही
होता है खतरों से भरा....
फिर से कहोगे
ऐसा अपेक्षित न था
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत