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छाया / नागराज मंजुले / शशिकला राय
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उजड़ते हुए
मेरे वीरान जीवन की
छाया बन गई कविताएँ।
कौन जाने आत्मा में
कैसे अँखुवाती हैं कविताएँ
पृथ्वी की कोख से
कैसे जन्मते हैं वृक्ष ?
मूल मराठी से अनुवाद — शशिकला राय