भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परिवर्तन / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:03, 14 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('दीर्घ श्वास की लघु ताल पर धीमे-धीमे जीवन की लय पर खो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दीर्घ श्वास की लघु ताल पर धीमे-धीमे जीवन की लय पर खोता चला गया कहीं उसका निश्छल-सुंदर-सा मन एक था उसका कोमल अंतःकरण क्या मिल गया उसे पाकर यौवन जिसके प्रकट होने पर उलझता गया मन सुख-समृद्धि की परिभाषा में धन-वृद्धि की अभिलाषा में एकत्र करना चाह रहा था असीम भौतिक सुख-साज भूल गया वह तुतलाना माँ की गोदी में सिर रखकर सो जाना जिस सुख के समक्ष सारे सुख हैं निरर्थक कुर्सी, धन, मान प्रसिद्ध नाम का यद्यपि सुख। </poem>