भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटा जीवन / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
बहुत ही छोटा-सा जीवन
पर्वतों की सीमाओं में
उन ऊँचाइयों के संसार में
जीवन की कठिन परिभाषा से
दूर जाकर रहना है मुझे
इस छोटी सी जीवन सीमा में
देख न सकूँगी मैं वह स्वर्णिम संसार
थोड़ा और बढ़ा दे मेरा जीवन ओ ईश्वर
मापना चाहती हूँ पर्वतों की ऊँचाइयाँ
और सागर की गहराइयाँ
आनन्द ले लूँ जरा उस सुन्दर संसार का
यदि उन प्रकृति-हरीतिमाओं के
दर्शन नहीं करवा सकता है यदि मुझे
तो बस इतना ही जीवन काफी है
नहीं चाहती बोझिल इस संसार में रहना और मैं
अब थककर सो जाना चाहती हूँ मैं।