भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लूट का दरबार है चारो तरफ़ / कर्नल तिलक राज
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 15 फ़रवरी 2018 का अवतरण
लूट का दरबार है चारों तरफ़
आज अत्याचार है चारों तरफ़।
हर कोई भरमा रहा है हर घडी
गुमशुदा संसार है चारों तरफ।
अब घटाएँ ख़ौफ़ की हैं छा गईं
आदमी बेज़ार है चारों तरफ़।
जितने भी हैं लोग बेबस हैं यहाँ
ज़िंदगी लाचार है चारों तरफ़।
क्या मिले दैरो-हरम मे बंदगी से
मौन की दीवार है चारों तरफ़।