भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी हादसों पर भारी है / विजय वाते
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:24, 29 जून 2008 का अवतरण
काम सांसो का फिर भी ज़ारी है|
जिन्दगी हादसों पर भारी है|
मन बदलते है मौसमो की तरह,
ये अमावास की हिस्सेदारी है|
आज दुनिया में सब नशे में हैं,
मुझेपे हलकी-सी कुछ खुमारी है|
जिसके हाथो से आईना फिसला,
किरंचें भी उसने ही बुहारी है|
ख्वाब आँखों में दिल में घोडें थे,
हमने वो जिंदगी गुज़री है|
मत हँसो आज तुम विजय वाते,
ये हँसी आँसुओ पर भरी है|