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क्यों न बोलें ये व्यथाएँ / राहुल शिवाय
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हे कलयुग के राम
सिया की अग्निपरीक्षा
कब तक लोगे
नारी का सम्मान यही है
देह है नारी
घुटती रहे महल में तो सति
है बेचारी
लछमन रेखा मर्यादा की
पार नहीं की
पर वह आँगन पार गई
तो भाग्य भाल पर
क्या लिक्खोगे
देख न पाए करती रही जो
हृदय-समर्पण
न्योछावर कर डाला उसने
तन, मन, जीवन
माली का है मूल्य चुकाया
याकि पुष्प का
एक बार अंतर में
झांक स्वयं से पूछो
तब समझोगे
बहुत सरल है दुनिया में
संबंध बनाना
नहीं सरल पर दुनिया में
संबंध निभाना
अगर परीक्षा ही लेनी है
तुम भी दे दो
क्या वनवास सिया को देकर
अग्निपरीक्षा
तुम भी दोगे
रचनाकाल-14 फरवरी 2018