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पतझड़ बीत गया / राहुल शिवाय

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पतझड़ बीत गया है
कलियाँ बोल रहीं
ओ बसंत आजा फिर तेरा स्वागत है

आजा फिर फूलों को अब इठलाना है
आजा फिर भँवरों को राग सुनाना है
आजा फिर कोंपल से बाग सजाना है
आजा फिर कूकों में प्रेम जगाना है
बौरों से बनती ये
फलियाँ बोल रहीं
ओ बसंत आजा फिर तेरा स्वागत है

जमा हुआ था मन ये, जमी शिराएँ थीं
थर-थर काँप रहीं ये सभी दिशाएँ थीं
पुरबा, पछुआ दुश्मन सभी हवाएँ थीं
मन की शिथिल हुईं सारी आशाएँ थीं
मगर झूमकर आज
खिड़कियाँ बोल रहीं
ओ बसंत आजा फिर तेरा स्वागत है

आया है सूरज फिर साथ गुलाल लिए
संवत आया है फिर से नव साल लिए
होली आई है फिर नया धमाल लिए
कहीं गुलाबी, हरा कहीं पर लाल लिए
उत्साहित होकर अब
गलियाँ बोल रहीं
ओ बसंत आजा फिर तेरा स्वागत है

रचनकाल-19 फरवरी 2016