भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे आने से / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
					Rahul Shivay  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:53, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatNavgeet}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरे आने से फिर हँसना सीख लिया है
पोर-पोर में सरसों के ज्यों 
फूल खिले 
जैसे सूखी तुलसी में 
कोंपल निकले 
जैसे भूखे के हाथों 
रोटी रख दी 
जैसे प्यासे की तुमने 
गागर भर दी 
तूने वैसा ही मुझको उपहार दिया है
तेरा तन-मन भरा हुआ 
खलिहान लगे 
सबसे प्यारी यह तेरी 
मुस्कान लगे 
फूल गया है गेंदे-सा 
मेरा तन-मन 
चहक रहा है पुलकित हो 
मन का आँगन 
तूने मरुथल में जीवन का बीज बिया है
दिन का हो उल्लास 
तुही संझाबाती 
बातें तेरी खुशियाेें 
भरी हुई पाती 
पास हमेशा रहती तू 
दिल में बसकर 
तुझे देखकर खिलते मेरे 
नयन-अधर 
मैंने अपना सबकुछ तेरे नाम किया है
रचनाकाल-11 दिसंबर 2016
 
	
	

