भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाँव का जीवन बदल गया / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण
पापा कहते हैं
कि गाँव का
जीवन बदल गया
पगडंडी पर छाँव नहीं है
बिछुआ वाला पाँव नहीं है
सच पूछो तो शहर हो गया
गाँव रहा अब गाँव नहीं है
वहाँ आम पर झूलों वाला
सावन बदल गया
साथ-साथ सब हँसते-गाते
दीवाली औ' ईद मनाते
सुख-दुख में सब इक दूजे का
जहाँ रहे हैं साथ निभाते
नए दौर में आज वहाँ का
मन-मन बदल गया
बरकत और दुआ की बातें
खोई होली गाती रातें
नाव कागजी कहाँ बहाती
सावन-भादों की बरसातें
बँटवारे की दीवारों से
आँगन बदल गया
रचनाकाल- 8 अगस्त 2011