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कवि करने आए हैं पाठन / राहुल शिवाय
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सभा सजी है कवि करने आए
हैं पाठन
सब अपनी-अपनी ही आज
सुनाने आए
बने सूरमा कविताओं के
पन्ने लाए
'काम बहुत है' पढ़कर निकल गए
कुछ सज्जन
कुछ तो बैठे-बैठे ऊँघ रहे
कुर्सी पर
पर्ची लेकर काट रहे हैं कुछ जन
चक्कर
'संचालक जी! ट्रेन छुड़ाने का क्या
है मन'
पढ़ने कविता कुछ पुस्तक लेकर
आए हैं
छठवीं बार विमोचन करवाने
लाए हैं
और न जाने होगा कितनी बार
विमोचन
रचनाकाल-12 जनवरी 2015