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तुमसे ही श्रृंगार किया / राहुल शिवाय

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मैंने अपनी कविताओं का
तुमसे ही श्रृंगार किया
शब्द-शब्द में तुम्हे बसाकर
शब्द-शब्द से प्यार किया

बादल में तेरी आँखों को
पुष्पों में अधरों को
चंदा में मुखडे को देखा
निज मंजिल में तुमको
सागर, धरती, अम्बर सबमें
तुमको ही साकार किया

सरसों के पीले पुष्पों में
टेसू की लाली में
कोयल की हो कुहुक कुहुक में
बौराई डाली में
तुमसे प्रीत-बसंत चुराकर
दूर हृदय-पतझार किया

जब से आए हो तुम तबसे
झूम रहा अंतरमन
शब्द-शब्द को चूम रहे हैं
औ' करते आलिंगन
तुमको पाकर जैसे मैंने
खुशियों से अभिसार किया

चाह नहीं थी धन-दौलत की
सफल हुई हर पूजा
प्राण! तुम्हारे जैसा पाया
नहीं धरा पर दूजा
मैंने जैसा कल था चाहा
वैसा ही स्वीकार किया