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दुनिया रजनी कहती है / चन्द्रेश शेखर
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अखिल विश्व में अँधकार की जो सरिता बहती है
यह रति की अनुचरी,जिसे दुनिया रजनी कहती है
पाकर सेज सरोहन का कोई संदेशा रति से
यह इठलाती बल खाती आती है धीमी गति से
अँबर पट की चादर पर तारों के दीप सजा कर
सिरहाने धर देती विधु को तकिये सा अलसा कर
फिर बेला की बास मिलाकर शीतल शांत मलय में
भर देती अक्षुण्ण सम्मोहन यौवन के किसलय मे
फिर श्रँगार प्रशाधन करती रति का विविध करों से
आवाहन करती अनँग का फिर यह मूक स्वरों से.
और कामना सकल विश्व की तब तृण सी हो जाती
यौवन की झंझा चलती तब बुझ जाती लौ बाती
हर धड़कन मृदंग सी बजती सांसें ताल मिलातीं
असह्य पीर उस निठुर विरह की प्रियतम प्रियतम गाती