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इतवार की सुबह / प्रज्ञा रावत
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इतवार की सुबह
कुछ ज़्यादा
ही मुलायम
सूरज कम चमकीला
पेड़ आरामग़ाह में
हवा उनीन्दी
मन गुनगुनाता
ऐसे में रहने दो
सब कुछ मौन।