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एक-एक दाना उजाला / प्रज्ञा रावत
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सूरज उगा
डूबा
दिन चढ़ा
उतरा
बचपन आया जवानी गई
घर की बड़ी लड़की ने
सूरज उगने से पहले
घर का रेशा-रेशा चमकाया
कोना-कोना महकाया
ठण्ड में तपिश पैदा की
गर्मी में घनेरी छाया
शाम ढलने से पहले घर को
फिर से सजाया-जगाया
घर को अनिष्ट से बचाने के लिए
जाने क्या-क्या जतन किए
और ख़ुद
हर बार डूब गई
डूबते सूरज के साथ
उगते और डूबते सूरज की
लालिमा को
एक बार देखने की लालसा में
हर बार डूबी है
घर की बड़ी लड़की।