भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक-एक दाना उजाला / प्रज्ञा रावत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 27 फ़रवरी 2018 का अवतरण
जब से चिड़िया रह गई है
एकदम अकेली
उड़ती ही रहती है
नीले आकाश में
कभी बादलों में
तो कभी
कड़कती बिजली से बचती
तेज़ मूसलाधार बारिश में
भीगती
फिर भी मुस्तैद
पँख नहीं रुकते उसके
जाने कौन-कौन सी दिशा से
इकट्ठा करती रहती है
एक-एक दाना
उजाला, ख़ुशबू, चमक
वो वर्ड्सवर्थ की स्काइलार्क है
जिसकी आँखों में बसा है
उसका घोंसला
हर बार डालते हुए दाना
चोंच से
अपने बच्चों को सुरक्षित देख
चैन की साँस भरती है
चिड़िया बहुत डरती है
बहेलियों से, आँधी से।