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एक-एक कोंपल फूटने के लिए / प्रज्ञा रावत

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जीवन की लय से बँधी
वो प्रेम से भरी
भरी ही रह सकती है
उसके छलकने की कोई जगह नहीं
बिफ़रना उसने सीखा नहीं
दीवारों से सटकर रोने की
उसकी फ़ितरत नहीं

जब-जब तुम उसे झरता देखो
तो ध्यान से पास आकर
महसूस करना उसको
वो अन्दर ही अन्दर
एक-एक कोंपल फूटने के लिए
छटपटा रही होती है

वो बहना चाहती है
उन गुमनाम नदियों की मानिन्द
जिनके आसपास
उदास निरपराध लोग
जीवन बिताते हैं।