पोस्टमार्टम रिपोर्ट / अनुपम सिंह
आप जानते हैं न औरतों का रोना 
वे रोती ही नहीं 
कारन करते हुए 
पीटती हैं अपनी छाती को
अभी-अभी जहाँ मैं खड़ी हूँ
एक औरत कारन कर रही है 
अपनी बेटी के लिए 
जो सिल्ली जैसी लेटाई गई है दरवाज़े पर 
जिसको घेर कर सुबक रही हैं 
गाँव भर की औरते
बच्चे खड़े हैं 
उनके लिए अबूझ पहेली है यह रोना
 
यह पुलिस जो अलग-अलग कोणों से
बयान दर्ज कर रही है लोंगो के 
औरत के आँसू मे जो नमक है 
उसे नहीं दर्ज कर रही है 
नहीं दर्ज कर रही है की उसकी लड़की को 
भात बहुत पसन्द थे
जब वह मटर के सतरंगी फूलों की कसम देकर 
उठा रही थी अपनी बेटी को 
उस पर भी ध्यान नहीं दिया पुलिस ने
 
पुलिस ने उन सिसकियों को दर्ज किया की नहीं 
जिसके बीच-बीच मे वह 
कुछ आवाज़ों का ज़िक्र कर रही थी  
आवाज़ें कई दिनों से 
घर का चक्कर लगा रही थीं 
उसकी बेटी के फ़्राक का रंग कैसा था  
कहा नहीं जा सकता
ऐसा लगता है उसने फ़्राक की फित्ती को 
मुँह से चबाया है 
पुलिस ने समय के साथ फीके पड़े रंग
और फित्ती चबाने की घटना को 
नहीं दर्ज किया बयान में 
जब पुलिस की रिपोर्ट आई तो 
उसमे फ़्राक का सही-सही रंग नहीं था 
उसके भात के पसन्द का 
वाजिब कारण भी नहीं 
रिपोर्ट मे न ही उन आवाज़ों 
और मटर के फूलों का ज़िक्र था 
जो उसकी माँ ने रोते-रोते सुनाया था
बस एक लाइन में लिखा था 
यह लड़की चार महीने के पेट से थी ।
	
	