भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जगहें - 1 / अदनान कफ़ील दरवेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 6 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदनान कफ़ील दरवेश |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ कहती थी —
"...जगहें बोतल की तरह होती हैं
वो भरतीं हैं
और ख़ाली भी होती रहती हैं"

माँ ये भी कहती थी —
"...जगहें कभी पूरी नहीं भरतीं
और न ही कभी पूरी रिक्त होती हैं
हम थोड़ी मशक्कत करके
थोड़ी और जगह बनाते हैं...."

मैंने भी
अपने प्रेम के लिए
थोड़ी जगह बनाई थी
लेकिन अब सिर्फ़ जगह बची है
प्रेम नहीं

अब प्रेम
उस जगह के खाली होने
और भरने के बीच का
एकान्त है.....

(रचनाकाल: 2015)