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एक कुत्ते की तरह चांद / कुमार मुकुल

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इस बखत ठंड भयानक है

और ठिठुरता हुआ मैं

बैठा हूँ कमरे में

बाहर चांद एक कुत्ते की तरह

मेरा इंतज़ार कर रहा होगा

अभी मैं निकलूंगा

और पीछे हो लेगा वह

कभी भागेगा

आगे-आगे बादलों में

कभी अचानक किसी मोड़ पर रुककर

लगेगा मूतने

और फिर

भागता चला जाएगा आगे।