भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपन जिनगीक अपने बनाउ अहाँ / रूपम झा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 9 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपम झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliRach...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपन जिनगीक अपने बनाउ अहाँ
अपन मुक्तिक झण्डा उठाउ अहाँ
देख-दुनियाँके हालत कऽ जानल करू।
निज सफलताक जिद्द अहाँ ठानल करू।।
मोन मे दीप ज्ञज्ञनक जराउ अहाँ।
अपन मुक्तिक झण्डा उठाउ अहाँ।।
अपन सपनार्कें नहि अहाँ मारल करू।
अपन क्षमता पर अपने विचारल करू।।
रूप शिक्षा सँ सदिखन सजाउ अहाँ
अपन मुक्तिक झण्डा उठाउ अहाँ।।
कानि-बाजिकऽ नहि दिन काटल करू
नित नवल ज्योति घर-घर मे वाँटल करू
नील नभपर सदति जगमगाउ अहाँ
अपन मुक्तिक झण्डा उठाउ अहाँ।।
जँ सुआसिन-बहुआसिन पिछड़ले रहत
रूप देशक समाजक बिड़ले रहत।।
सभ विषमताक जड़िसँ मेटाउ अहाँ।
अपन मुक्तिक झण्डा उठाउ अहाँ।।