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नए वर्ष का स्वागत / रंजन कुमार झा

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नये वर्ष का स्वागत तब हम
नव उमंग सरगम से करते

दुःसह दुखों की स्याह निशा में
नयन नीर का भार न ढोते
उपवन के पुष्पों से माली
यदि अपना अधिकार न खोते
शिशुकालों में ही साखों से
पात न यूँ बेमौसम झरते

तिमिरग्रस्त न होता जीवन
तार न होती मर्यादाएँ
स्वप्न किसी के नहीं बिखरते
बालाएँ हों या अबलाएँ
बुलबुल को उन्मुक्त गगन में
छोड़ घौंसले अगर न डरते

मजहब की ऊँची दीवारें
पाखंडों का मोल न होता
काम सभी हाथों को मिलता
श्रम का हिस्सा गोल न होता
व्यर्थ विवादों में पड़कर न
पल-पल जीते , पल-पल मरते