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खिस्सा / ओम बधानी
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खिस्सा उन त कपडा़ कि सिलीं थैलकि होंदु
पर यैकि महिमा अपार छ
अर यैकि दासि सारि पिरथि छ
किलै कि मनखि न सारि पिरथि अपड़ा बस म करीं छ अर
मनखि यैका बस म छ
यु खालि त मनखि दुखि
अर यु भर्यूं त मनखि मस्त मगन
मनखि कि इज्जत परमत यैका हि हाथ छ
भर्यूं खिस्सा आवा जी
खालि खिस्सा जावा जी
यु पूरू त कभि नि भरेंदु पर
जरा सि भर्यै जौ त
बजदु छ अर गुब्बारू सि फुलि भि जांदु
अर मनखि ह्वै जांदु पर्य मति कु
जनि खिस्सा भरेंदु मनखि कि घिच्ची खतेण लग जांदि
आंखि चमळाण लग जांदि
जोंक कबळाण लग जांदि
अर काया बबळाण लग जांदि
इनु नौ छम्मी छ यु खिस्सा।