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कब मसाइल जिंदगी के कम हुए / रंजना वर्मा
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कब मसाइल जिंदगी के कम हुए
जब मिले दोनों तो मैं तुम 'हम' हुए
चाहते तो हैं सभी खुशियाँ मिलें
साथ मे लेकिन हजारों ग़म हुए
जब हुआ गंगो जमन का मेल तो
बस वहीं पर प्यार के संगम हुए
शबे फुरकत तो गुज़रती ही नहीं
चाँदनी में ख़्वाब सारे नम हुए
वस्ल की उम्मीद जब मिटने लगी
राह तकते चश्मे - नम बेदम हुए
एक दरिया दर्द का बहने लगा
आशियाने पीर के परचम हुए
मुश्किलें मिटतीं नहीं इंसान की
उलझ ज्यों जुल्फों में पेचो खम हुए