भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिना वजह दिल जला रहा था / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिना वजह दिल जला रहा था
वो रेत यूँ ही उड़ा रहा था

गुजर रहा था सभी से बच कर
न जाने क्या गुल खिला रहा था

न जाने था ग़म क्या जिंदगी में
जो वो सभी से छुपा रहा था

किये था बैठा निगाह नीची
वो खुद से नज़रें बचा रह था

जवाब देना पड़े न उस को
इसी से बातें घुमा रहा था

नहीं मिली माँ की गोद जिसको
न कोई उस को सुला रहा था

उठीं समन्दर में खूब लहरें
सभी किनारे डुबा रहा था