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यही सोच लो क्यों मिली जिंदगी है / रंजना वर्मा

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यही सोच लो क्यों मिली जिंदगी है
भरी है ग़मों से जरा सी खुशी है

किया तुम ने तो हमसे धोखा है लेकिन
हुई ही कहाँ तुम से कुछ दुश्मनी है

कमी हो न जल की यही चाहते सब
मेरे गाँव में पर न कोई नदी है

बहुत कोशिशें कीं रहें खुश हमेशा
मगर अब न चेहरे पे आती हँसी है

गिला क्या करें जिंदगी की कमी का
लिखी अपनी तकदीर में मुफ़लिसी है

अगर दूर रहना है चाहत तुम्हारी
तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है

तुम्हे हमने माना है रब जिंदगी में
तुम्हें याद करना हुई बन्दगी है