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कहीं भी आसरा मिलता नहीं था / रंजना वर्मा

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कहीं भी आसरा मिलता नहीं था
नसीबा तो मेरा रूठा नहीं था

मेरी नजरों ने जब देखा था तुझको
कहीं भी दिल मेरा लगता नहीं था

रहे हम ढूंढते हर ओर लेकिन
नज़र आता तेरा रस्ता नहीं था

भटकते महफ़िलों में हम फिरे पर
कहीं पर भी तेरा चर्चा नहीं था

घिरी थीं बदलियाँ भी आसमाँ में
मगर कोना कोई भीगा नहीं था

दुआएँ आसमाँ वाला जो सुन ले
मेरे दिल में कोई अरमाँ नहीं था

चला आयेगा फिर वापस परिन्दा
ये घर उस को कभी भूला नहीं था

समूची ज़िन्दगी दे कर खरीदा
कि तब भी प्यार ये महँगा नहीं था

कभी भूले से भी मत बोल देना
हमारे बीच में रिश्ता नहीं था