भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रस्म पाँवों में पड़ी जंजीर है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रंग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रस्म पाँवों में पड़ी जंजीर है
दर्द तो बस दिल की ही जागीर है
दास्ताने ग़म तो अश्कों ने लिखी
कौन पढ़ता सिर्फ़ एक लकीर है
हैं बहुत से दुष्ट दुःशासन यहाँ
रोज़ खिंचती द्रौपदी की चीर है
नन्द जैसा मित्र मिलता ही नहीं
फिर कसकती देवकी की पीर है
मुफ़लिसी में ज़िन्दगी है बीतती
कब सुदामा-सी मिली तक़दीर है
सिर्फ अफ़साने बयाँ करते रहे
साथ रांझे के रही कब हीर है
कर्ण या रसखान-सा दानी कहाँ
दान देने से बना जो फ़कीर है